RBI Monetary Policy 2022 के अनुसार लोन अब हो जायेंगे और भी मंहगे

RBI Monetary Policy 2022
RBI द्वारा 7 दिसंबर 2022 को देश की नई मौद्रिक नीति की घोषणा की गई। इसके तहत कई चीजों में बदलाव किया गया है।इस नई नीति से कुछ क्षेत्रों में मंहगाई दर बढ़ी है तो कुछ में मंहगाई दर में कटौती की गई है।समय-समय पर रिजर्व बैंक की मॉनेटरी कमिटी द्वारा आर्थिक नीतियों की घोषणा  की जाती है ताकि देश की अर्थव्यवस्था, मुद्रा के प्रवाह तथा मंहगाई को नियंत्रित किया जा सके। वर्ष 2022 की आखिरी मौद्रिक नीति में किन-किन आर्थिक विषयों में बदलाव किया गया है,इसकी हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।

• रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट को बढ़ाए जाने ब्याज दरों में भी बढ़ोतरी हुई है :

रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में 0.35% बढ़ोतरी किए जाने के कारण अब ब्याज दरों में भी वृद्धि हुई है। इसका सीधा मतलब यह है कि लोन अब मंहगे होने वाले हैं। यह लगातार पांचवी बार है जब रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों को बढ़ाया है। वर्तमान में रेपो रेट 6.25% तक पहुंच गया है। बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ 8वें महीने 10% के ऊपर दर्ज की गई है।

• अगर आप 30 लाख का होम लोन 20 साल के लिए लेते हैं तो पहले आपको 8.55% की दर से ब्याज लगता था। वर्तमान रेपो रेट में वृद्धि होने के कारण अब ब्याज की दर 8.90% हो गई है।

• इसी प्रकार से 5 सालों के लिए 10 लाख के ऑटो लोन पर अब 8.4% की जगह 8.75% ब्याज भरना पड़ेगा।

• सकल घरेलू उत्पाद तथा मुद्रा-स्फीति के संबंध में की गई संभावना :

इस रिपोर्ट के अनुसार 2023 के पहले तिमाही तक सकल घरेलू उत्पाद की दर 7.1 तक रहने का अनुमान लगाया गया है। कृषि क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई है। रबी फसल की अच्छी शुरुआत के साथ कृषि लचीला रहने वाला है। इस बार का कुल बोया गया क्षेत्र 6.8% है जो सामान्य से कहीं अधिक है। निर्माण क्षेत्र के लिए PMI अक्टूबर में 55.3% से बढ़कर नवंबर में 55.7% हो गया है। सेवा के क्षेत्र में भी PMI में विस्तार हुआ। अक्टूबर में यह 55.1% से बढ़कर नवंबर में 56.4% तक पहुंच गया है। इस प्रकार निर्माण एवं सेवा क्षेत्रों की PMI को मिलाकर हमारे देश की नवंबर महीने की PMI विश्व में सर्वोच्च स्थान पर है।CPI मुद्रा-स्फीति अगले वित्तीय वर्ष अर्थात 2023-24 की पहली तिमाही के लिए 5% तथा दूसरी तिमाही के लिए 5.4% रहने की संभावना दर्ज की गई है। दक्षिण-पश्चिम मानसून की समाप्ति के पश्चात निर्माण कार्यों में गति आयी है। जिससे स्टील के उपभोग में भी वृद्धि दर्ज की गई है। इसके साथ निवेश गतिविधियों में भी वृद्धि हुई है। क्योंकि सरकार द्वारा इनका समर्थन किया जा‌ रहा है। अक्टूबर महीने में रिटेल मंहगाई में कमी दर्ज की गई है। जिसके परिणामस्वरुप वस्तुओं के उपभोग में बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही वैश्विक तनाव, वैश्विक मंदी तथा विश्व की आर्थिक स्थिति में गिरावट के कारण रिजर्व बैंक की इस मॉनेटरी पॉलिसी में मुद्रा-स्फीति 4% के ऊपर रहने की संभावना व्यक्त की गई है। 

• भारतीय रिजर्व बैंक ने आर्थिक मंदी के संबंध में क्या कहा :

रिजर्व बैंक ने ऐसा अनुमान लगाया है कि वैश्विक मंदी के कारण देश की अर्थव्यवस्था में बहुत बुरा प्रभाव पड़ने वाला है। जैसा कि हम सभी लोग जानते ही हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्वी एवं पश्चिमी देशों में काफी तनाव बढ़ गया है। एक दूसरे के ऊपर कई प्रकार के व्यापार प्रतिबंध लगाए जाने के कारण विश्व की अर्थव्यवस्था काफी बुरी तरह से डगमगा गई है। यूक्रेन स्थित क्रीमिया पश्चिमी देशों को कच्चे तेल एवं गैस का निर्यात किया करता था। लेकिन युद्ध के पश्चात इसकी आपूर्ति भी बंद कर दी गई है। जिससे तेल एवं  की कमी हो गई है।साथ ही इसका मूल्य भी प्रभावित हुआ है। रूस जो विश्व का एक सशक्त एवं आर्थिक रूप से मजबूत देश है, व्यापार प्रतिबंधों को जारी रखते हुए निर्यात को बंद कर दिया है। पश्चिमी देशों में गेहूं, बार्ली,दालों इत्यादि अनाजों का निर्यात रूकने से खाद्य पदार्थों का मूल्य बढ़ रहा है।इन देशों का तनाव आगे भी जारी रहता है तो विश्व में भयंकर मंदी आ जाएगी। पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बिगड़ जाएगी।इन सब विषयों पर चर्चा करते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि एक भयंकर वैश्विक एवं आर्थिक मंदी हमारे पीछे है।

• वैश्विक मंदी का भारत पर कितना असर पड़ सकता है :

भारत इस समय एक अच्छी आर्थिक स्थिति में है।कोरोना महामारी के पश्चात आर्थिक मंदी से जूझ रहा भारत काफी हद तक इससे उबरने में सफल हो पाया है। खासकर कृषि, थोक एवं खुदरा व्यापार तथा निर्माण के क्षेत्रों में बढ़ोतरी होने के कारण मुद्रा-स्फीति में कमी आई है।स्वव्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि सभी लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो।रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणामस्वरूप विश्व का व्यापार बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ है। चूंकि इसका थोड़ा बहुत असर भारत पर भी देखने को मिल रहा है। क्योंकि भारत का पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों देशों के साथ व्यापार होता है।इस युद्ध के कारण व्यापारिक गतिविधियां में शिथिलता आई है। पश्चिमी देश पूर्वी देशों में व्यापार नहीं कर रहे हैं तथा पूर्वी देश ने भी पश्चिमी देशों में व्यापारिक गतिविधियां में रोक लगा दी है। भारत के संबंध पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों देशों के साथ अच्छे रहे हैं और वर्तमान में भी इस पर कोई असर नहीं पड़ा है।जिस कारण यहां की व्यापारिक गतिविधियां प्रभावित नहीं हुई हैं। चूंकि रूस भारत का एक पड़ोसी देश है तथा हमेशा से ही भारत का हितैषी रहा है। इसलिए भारत को इसका बहुत फायदा हुआ है।भारत अपने पड़ोसी रूस से अनाजों को खरीदकर उसे पश्चिमी देशों को बेच रहा है। इससे देश को काफी मुनाफा प्राप्त हो रहा है।रूस से निर्यात किए जाने वाले गेहूं से पहले अमेरिका सहित बाकी देश खाद्य पदार्थों का निर्माण किया करते थे। इसके साथ ही यूक्रेन से भी इसका आयात काला सागर से होकर किया जाता था। लेकिन रुस द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के कारण आपूर्ति पूरी तरह बंद पड़े गया है।इस मौके का भारत ने फायदा उठाया है। रुस से गेहूं का आयात करके भारत गेहूं का आटा बना रहा है तथा उसे विश्व के बाकी देशों खासकर अमेरिका,यूरोप में स्थित देशों को बेच रहा है। इस बार भारत के कृषि उत्पादन में भी अच्छी खासी वृद्धि हुई है। जिससे इसके निर्यात में भी सुधार हुआ है।मेक इन इंडिया इनोवेशन से भी भारत काफी हद तक आत्मनिर्भर हुआ है।इन सबसे यही निष्कर्ष निकालता है कि अगर वैश्विक मंदी का दौर आता है तो भारत इससे ज्यादा प्रभावित नहीं होगा।

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