क्या अगले 10 सालों में भारत का तापमान 60° सेल्सियस से भी ऊपर चला जायेगा ?

global warming kya hai

 

जिस तरह से हमारे वातावरण का तापमान निरंतर बढ़ता ही जा रहा है, वो दिन दूर नहीं जब यह 60° सेल्सियस से भी ऊपर चला जायेगा। इतनी भीषण गर्मी जब पड़ेगी तब पेड़-पौधे तो क्या जीव-जंतु एवं इंसान भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। हर एक पर इसका असर देखने को मिलेगा। चूंकि हमारे देश का औसत तापमान 45° सेल्सियस के आसपास ही रहता है। इसलिए हमलोग इतनी गर्मी को झेल लेते हैं। जब तापमान इससे भी ऊपर चला जायेगा तो हम इसे बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे और हमारा पूरा बदन इस गर्मी से झुलसने लगेगा। इससे गर्मी से खासकर उत्तर एवं मध्य भारत के लोग ज्यादा प्रभावित होंगे। क्योंकि वहां का औसत तापमान अपेक्षाकृत कम ही रहता है। जिससे वहां के लोग ज्यादा गर्मी के आदी नहीं हैं।

अगर ऐसी ही स्थिति बनी रहती है तो आनेवाले समय में हमें ग्लोबल वार्मिंग के परिणामस्वरूप उपजने वाले कई और प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए भी तैयार रहना होगा। जैसा कि हमलोग जानते ही हैं कि प्रकृति का संतुलन धीरे-धीरे ही बिगड़ता है और इसे संतुलित होने में भी हजारों से लाखों वर्षों का समय लगता है। लेकिन वर्तमान में जिस तरह से मानवीय गतिविधियां अपनी चरम सीमा पर हैं, उससे तो यही लगता है कि यह समय काफी नजदीक है। जब चारों तरफ हाहाकार मच जायेगा और मानव अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ने लगेंगे।

• हमारे वातावरण का तापमान निरंतर क्यों बढ़ रहा है :

वातावरण का बढ़ता तापमान हम मानवों की क्रियाकलापों का ही परिणाम है। जिस तरह से मानव विकास की होड़ में प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हुए आगे बढ़ता ही जा रहा है। इससे तो यही प्रतीत होता है कि धरती का विनाश नजदीक ही है। आज मानव अपने ऐशो-आराम की वस्तुओं के निर्माण के लिए जंगलों को काटकर कारखानों को स्थापित करता ही जा रहा है। इससे मानवों की आवश्यकताओं की पूर्ति तो हो रही हैं। लेकिन इसके कई दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। इन सबमें ग्लोबल वार्मिंग की समस्या प्रमुख है।

कारखानों को लगाने के लिए जब पेड़ों-पौधों को काटा जाता है तो इससे वातावरण का संतुलन बिगड़ जाता है। क्योंकि पेड़-पौधों हमें ऑक्सीजन देने के साथ बारिश कराने एवं वातावरण को ठंडा रखने का भी काम करते हैं। लेकिन इनकी अनुपस्थिति में हवा तो प्रदूषित होता ही है साथ वातावरण का तापमान भी बढ़ने लगता है। जिससे ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार पेड़-पौधों की कटाई भी तापमान के बढ़ने का एक प्रमुख कारण है।

कारखानों से निकलने वाले क्लोरो-फ्लोरो कार्बन,सल्फर डाई ऑक्साइड जैसी जहरीली गैसें भी गर्मी बढ़ने का एक प्रमुख कारण है। ये गैसें जब वायुमंडल में ऊपर उठती हैं और ओजोन परत तक पहुंचती हैं तो उसे क्षतिग्रस्त कर देती हैं।ओजोन परत हमारे वायुमंडल की एक महत्वपूर्ण परत है। जो सूर्य के प्रकाश में उपस्थित हानिकारक किरणों को अवशोषित करके स्वच्छ एवं लाभदायक प्रकाश हम तक पहुंचाती है। लेकिन इस परत के क्षतिग्रस्त हो जाने से हानिकारक किरणें पृथ्वी तक पहुंच रही हैं और जिससे कई बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। इसके साथ ही ये किरणें वातावरण के तापमान को भी बढ़ाने का काम भी कर रही हैं।

• निरंतर तापमान बढ़ने के कौन-से दुष्परिणाम होंगे :

अगर  हमारे वातावरण का तापमान ऐसे ही निरंतर बढ़ता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा जब हमारी पृथ्वी इंसानों के रहने लायक नहीं रह जायेंगी। क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण यहां का संतुलन पूरी तरह बिगड़ जायेगा। पेड़-पौधे,जीव-जंतु और इंसान इस भीषण गर्मी से झुलसने लगेंगे। जो कमजोर होगा वो पहले मर जायेगा। जबकि इसे बर्दाश्त कर सकने वाले ही बच पायेंगे। लेकिन इस गर्मी से बचें हुए इंसानों एवं जीवों की शारीरिक संरचना ही पूरी तरह बदल जायेगी। उनकी त्वचा काफी मोटी होगी तथा उनके शरीर से पानी निष्कासन भी काफी कम होगा।ऐसा भी हो सकता है कि इंसान पूरी तरह से जानवर में बदल जाये और उनका रहन-सहन भी जानवरों की तरह हो जाते। क्योंकि डार्विन के विकास के सिद्धांत के अनुसार "जीव‌ अपने आप को विपरीत परिस्थितियों में बचाए रखने के लिए वातावरण के अनुरूप अपना  स्वरूप बदल लेते हैं"।शायद यही इंसानों के लिए भी सही साबित होगा। 

• ग्लोबल वार्मिंग का पृथ्वी के बर्फीले क्षेत्रों पर क्या प्रभाव पड़ेगा :

हमारी धरती का एक बहुत बड़ा हिस्सा बर्फ से ढका हुआ है और यही हमारे वातावरण के तापमान को नियंत्रित करने सहायता प्रदान करती है। लेकिन बढ़ते तापमान के कारण पृथ्वी के ठंडे क्षेत्रों में जमी बर्फ पिघलने लगेगी। जिससे हमारी धरती में जल का स्तर बढ़ जायेगा और यह जलमग्न हो जायेगी। धरती अगर जल में समा जाती है तो हम इंसानों का वजूद भी मिट जायेगा।

• निरंतर बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के कौन-से उपाय किये जा सकते हैं :

इस बढ़ते तापमान का नियंत्रण समय रहते ही संभव है। जब ये हद से ज्यादा हो जायेगा तो इसे कम करना लगभग असंभव होगा। क्योंकि प्रकृतिक क्रियाओं का नियंत्रण हमारे हाथ में नहीं होता है और जब प्रकृति अपना विकराल रूप धारण करती है तो कोई भी इससे बच नहीं पाता है। इसलिए हमें समय रहते ही तापमान को नियंत्रित करने के लिए कारगर उपायों को अपनाकर अपनी धरती को बचाना है।

सबसे पहले हमें कारखानों को नियंत्रित करना होगा। हमें उन चीजों का उपभोग कम से कम करना होगा। जिसके निर्माण में बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है तथा जो वातावरण के तापमान को बढ़ाने के लिए भी उत्तरदायी होता है। इन कारखानों से निकलने वाले जहरीली गैसों का भी नियंत्रण बहुत जरूरी है।इसके लिए वैसे एयर फिल्टर का निर्माण किया जाना चाहिए जो इन जहरीली गैसों को निष्क्रिय करने में सक्षम हो। हमें प्लास्टिक एवं उससे बनी वस्तुओं का उपयोग भी समाप्त कर देना चाहिए। क्योंकि इससे भी प्रदूषण और तापमान बढ़ता है।

हमें पेड़-पौधों की कटाई पर रोक लगाना चाहिए। क्योंकि ये हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं। ये न सिर्फ हमारे वातावरण को साफ रखते हैं बल्कि तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायक होते हैं। जो क्षेत्र जंगलों के नजदीक होते हैं, वहां का तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। क्योंकि पेड़-पौधे की पत्तियों से निरंतर पानी का वाष्पन होता रहता है।जो आसपास के वातावरण को ठंडा रखता है। इसलिए हमें ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करना चाहिए ताकि वातावरण का संतुलन बना रहे तथा ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से हमें निजात मिल सके।


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