क्या कभी आम इंसान भी चांद की यात्रा कर पायेंगे


Artemis Mission
हम लोगों ने अक्सर अंतरिक्ष यात्रियों के चांद पर जाने की खबर सुनी एवं देखी हैं। लेकिन आप में से किसी ने कभी सोचा है कि चांद की सैर पर आम लोग भी जा पाएंगे। इस प्रश्न पर बहुतों का जवाब न ही होगा। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि चांद पर जाने के लिए बहुत सारे पैसे एवं अनेक सुरक्षा उपकरणों की आवश्यकता होती है। साथ ही इसके कई खतरे भी हैं। लेकिन आम लोगों का यह सपना बहुत जल्द पूरा होने वाला है। आने वाली सदियों अंतरिक्ष की यात्रा बहुत सस्ती होने वाली है। जिससे कम मूल्य पर धरती के बाहर भी हम लोग घूम कर आ पाएंगे।

चांद एवं अंतरिक्ष की यात्रा को सुगम बनाने के लिए नासा ने 16 नवंबर 2022 को Artemis-I Mission की शुरुआत की है।इस मिशन के तहत ऑरियन नामक स्पेसक्राफ्ट चांद पर भेजा गया।यह स्पेसक्राफ्ट चांद से लगभग 97 किलोमीटर की दूरी से गुजरते हुए इसके सतह की तस्वीरों को खींचने में सफल हो पाया है। इस दौरान इसने उन क्षेत्रों की भी तस्वीरें खींची जहां पर कभी अपोलो 11,12 तथा 14 के अंतरिक्ष यानों की लैंडिंग हुई थी। इस मिशन के अंतर्गत ही चांद पर भी जीवन की संभावनाओं की खोज की जाएगी। क्योंकि अंतरिक्ष वैज्ञानिक पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश कर रहे हैं।उन लोगों का मानना है कि हमारी आकाशगंगा के अंतर्गत आने वाले दूसरे सौरमंडल के ग्रहों पर भी लोगों का बसेरा होगा या फिर ये लोग हमारे ही पूर्वज हैं जो कई हजारों साल पहले दूसरे ग्रहों पर बस गए थे। जितनी हमारी आकाशगंगा विशाल है, उसी तरह इसमें दबे हुए रहस्यों‌ की संख्या भी अनगिनत हैं। जिन पर से निकट भविष्य में पर्दा उठेगा।

• नासा का Artemis Mission क्या है : 

संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा चांद पर खोज करने के लिए शुरू किए गए मिशन का नाम Artemis Mission रखा गया है।जो तीन चरणों में पूरा किया जाएगा। इसके पहले चरण अर्थात Artemis-I Mission का आरंभ 16 नवंबर 2022 को किया गया।इस मिशन को पूरा करने के लिए शक्तिशाली SLS रॉकेट का इस्तेमाल किया गया। जिसने ऑरियन नामक स्पेसक्राफ्ट को आसानी से चांद पर पहुंचाया। यह स्पेसक्राफ्ट काफी आधुनिक उपकरणों से लैस था तथा इसने चांद की कई महत्वपूर्ण तस्वीरें खींची। इस मिशन की अवधि लगभग 26 दिनों का है। इस दौरान यह कुछ सैटेलाइट चांद की कक्षा में छोड़कर आगे की ओर बढ़ जाएगा और अंतरिक्ष के अन्य क्षेत्रों को भी तलाशेगा।अपना काम पूरा करने के पश्चात 11 दिसंबर 2022 को यह प्रशांत महासागर में गिर जाएगा। यह मिशन अपने तीसरे प्रयास में सफल हो पाया। इससे पहले भी वर्ष 2022 में दो बार इस मिशन के अंतर्गत रॉकेट लॉन्चिंग को मौसम की खराबी के कारण टालना पड़ा था। इस मिशन में किसी अंतरिक्ष यात्री को नहीं भेजा गया है। क्योंकि इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य चांद के वर्तमान हालातों का जायजा लेना है।ताकि जब अंतरिक्ष यात्री चांद पर भेजे जाएं तो उन्हें कोई परेशानी न हों। इस मिशन के सफल हो जाने से मनुष्यों के अंतरिक्ष की यात्रा करने का मार्ग भी खुल गया है। क्योंकि इसी के अंतर्गत ही लोगों को चांद पर ले जाया जाएगा।

इसके दूसरे चरण अर्थात Artemis-II Mission के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर भेजा जाएगा। जिसकी शुरुआत वर्ष 2022 में की जाएगी। इस चरण में चांद की धरती का पूरा अध्धयन किया जाएगा और मनुष्यों के लिए अनुकूल परिस्थितियां को खोजा जाएगा। वहां पर वायुमंडल के बारे में भी जानकारी इकट्ठा की जाएगी। वहां पर मानवों की उपस्थिति की भी जांच की जाएगी। नासा द्वारा ऐसी योजना बनाई जा रही है ताकि अंतरिक्ष यात्री इस बार ज्यादा दिनों तक रूक पाएं।।इन अध्ययनों से कई रहस्य खुलकर लोगों के सामने आ जाएंगे। 

विगत कई दशकों में कई बार चांद पर अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का काम नासा द्वारा किया जा चुका है। लेकिन आवश्यक उपकरणों के अभाव में वे ज्यादा दिनों तक वहां रूक नहीं पाए।जिस कारण चांद को पूरी तरह नहीं खोजा जा सका है।

Artemis-II Mission के सफल होने पर इसके तीसरे चरण अर्थात Artemis-III Mission की शुरुआत की जाएगी।जिसके तहत आम लोगों को चांद पर ले जाया जाएगा।अगर ऐसा होता है तो यह किसी सपने से कम नहीं होगा। क्योंकि हम लोगों ने फिल्मों और समाचारों में ही चांद को देखा है।इसे नजदीक से देखना हमारे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि साबित होगी।इसके लिए अंतरिक्ष में हवाई बसों को चलाने की भी व्यवस्था की जा रही है। जिससे यात्री आसानी से स्पेस स्टेशन से चांद तक पहुंच पाएंगे।इस मिशन में महिलाओं को भी शामिल किया जाएगा।इस दौरान यात्री चांद पर स्थित बर्फ एवं पानी का अध्धयन करेंगे।

• चांद के आखिरी मिशन का नाम क्या था :

इससे पहले वर्ष 1972 में आखिरी मून मिशन का नाम अपोलो 17 था।इस मिशन के अंतर्गत तीन अंतरिक्ष यात्री-यूजीन ए. सर्नन,हैरिसन एच. श्मिट तथा रोनाल्ड ई. इवांस चांद पर उतरे थे।इस मिशन की शुरुआत 7 दिसंबर को तथा इसका समापन 19 दिसंबर 1972 को हुई थी। चूंकि ये तीनों सदस्य पहले के मून मिशन का हिस्सा रह चुके थे। इसलिए वहां के हालातों से भली-भांति परिचित थे।इस मिशन के अंतर्गत चांद की उच्च भूमि का चुनाव किया गया था।जो Mare Imbrium से अपेक्षाकृत अधिक पुराना था।यहां पर ज्वालामुखी से संबंधित गतिविधियों का भी अध्ययन किया जाना था। इसलिए इस मिशन के सदस्यों ने Taurus-Littrow का चुनाव किया। क्योंकि यह चांद की ऊपरी कक्षा से ज्वालामुखी निर्मित भूखंड जैसा प्रतीत हो रहा था। सर्नन तथा श्मिट लूनर रोलिंग व्हीकल की मदद से चांद की धरती पर स्थित Taurus-Littrow घाटी पर उतरे।वहां पर उन्होंने चांद की सतह का अध्ययन किया तथा कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को वहां पर छोड़ा।जांच के दौरान उन्हें नारंगी रंग की मिट्टी मिली। जिससे यह साबित होता है कि इस स्थान का निर्माण ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण हुआ है। इस दौरान इवांस चांद की कक्षा पर स्थित कमांड सेंटर में रहे तथा वहां से चांद के सतह की महत्वपूर्ण तस्वीरें खींची।इस मिशन ने पिछले कई मिशनों के रिकॉर्ड छेड़ दिए।यह चालक दल वाला सबसे लंबी अवधि वाला मिशन था।इस मिशन के दौरान यह काफी लंबी दूरी तक चांद पर सफर किया।इसके साथ ही चांद की कक्षा पर सबसे अधिक समय तक रहने वाला एकमात्र मिशन था।

अपोलो 17 मिशन की सफलता नासा के लिए काफी बड़ी उपलब्धि थी। क्योंकि यह पिछले सभी मिशनों की तुलना में अधिक जानकारी जुटाने एवं सटीक अध्धयन करने में सफल रहा।

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