EWS Reservation किस प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को फायदा पहुंचाएगा

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आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के लिए आरक्षण अर्थात EWS Reservation का मुद्दा बीते कई दशकों से चर्चा का विषय रहा है।‌ सत्ता में रह चुकी भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से बनी नेशनल फ्रंट की सरकार ने आरक्षण के इस मॉडल को लोकसभा में पहली बार वर्ष 1991में प्रस्तुत किया था। लेकिन सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई क्योंकि यह संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित कर रहा था। जिस कारण EWS Reservation को रद्द कर दिया गया। लेकिन वर्ष 2019 से यह फिर से सुर्खियों में है।

EWS Reservation क्या है और क्यों इसका विरोध हो रहा है, इन सब विषयों पर चर्चा करने से पहले हम आरक्षण और समाज में इसकी आवश्यकता को अच्छी तरह से समझने का प्रयास करेंगे। इसके बाद हम इंदिरा साहनी मामले के बारे में जानेंगे।

• आरक्षण क्या है :

आरक्षण एक ऐसी व्यवस्था है जिसके माध्यम से आर्थिक और सामाजिक रुप से कमजोर वर्गों को समानता का अवसर प्रदान किया जाता है ताकि उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके। हमारे समाज का विभाजन जातियों के आधार पर किया गया है। इसलिए आरक्षण भी जातियों के आधार पर ही दिया जाता है। आरक्षण संबंधी ये प्रावधान मूल संविधान में दिए गए हैं। अगर सरल शब्दों में कहा जाए तो आरक्षण समाज के निचले वर्गों को ऊपर लाने का एक जरिया है, जिससे समाज में समानता स्थापित किया जा सके। हमारे संविधान में उल्लिखित नीति-निर्देशक तत्व भी समाज में समानता के आधार लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना का प्रावधान करता है। 

• हमारे देश में आरक्षण की आवश्यकता क्यों पड़ी :

1947 से पहले हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेजी शासन के दौरान ही जमींदारी या सामंतवादी प्रथा का उदय हुआ था। जमींदार वर्ग एक प्रकार से अंग्रेजी सरकार के नुमाइंदे थे, जो पिछड़ी जातियों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों पर अत्याचार करते थे।‌ उन पर भारी लगान लगाते थे। जिसे न चुकाने के एवज में उनकी जमीन छीन ली जाती थी। जिससे कमजोर वर्ग और ज्यादा गरीब एवं सामाजिक रुप से भी पिछड़ने लगा। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने देश को एकसूत्र में बांधने के लिए देशी रियासतों का विलय करके अखंड भारत देश की स्थापना का संकल्प लिया। भारत आजाद तो हो गया था लेकिन उच्च वर्ग एवं पिछड़ा वर्ग के बीच जो गहरी दरार पड़ गई थी, सरकार उसे पाट नहीं पाई। उच्च वर्ग शिक्षित एवं साधन संपन्न होने के कारण समाज में एक सशक्त वर्ग था। जबकि आर्थिक एवं सामाजिक रुप से पिछड़ा वर्ग, संसाधनों के अभाव में आगे बढ़ने में असमर्थ था। इस कारण सामाजिक विषमता की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। इसी सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए कई प्रयास किए गए और देश में आरक्षण व्यवस्था को लागू किया गया। सबसे पहले एसटी और एससी वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में क्रमश: 7.5% तथा 15% आरक्षण का प्रावधान किया गया। इसके पश्चात मंडल आयोग की सिफारिशों पर ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को 27% आरक्षण दिया गया।

• अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, मंडल आयोग और OBC आरक्षण क्या हैं :

आजादी के बाद जब जब पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए 29 जनवरी 1953 को देश के पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। जिसका अध्यक्ष काका कालेलकर को बनाया गया था। इस आयोग ने लगभग दो वर्षों के बाद 30 मार्च 1955 को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। लेकिन सत्ता में काबिज कांग्रेस सरकार ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया और यह ठंडे बस्ते में पड़ा रहा। 1977 आते-आते जब मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो पिछड़ा वर्ग आरक्षण का मामला फिर सुर्खियों में आया। 20 दिसंबर 1978 को बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के नेतृत्व में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का पैमाना तैयार करने के लिए "मंडल आयोग" का गठन किया गया। चूंकि देश में आखिरी बार जातीय आधारित जनगणना वर्ष 1931 में हुई थी। इसलिए मंडल आयोग ने इसी जनगणना के आधार पर 12 दिसंबर 1980 को अपनी रिपोर्ट पेश की तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण की मांग की। लेकिन तब तक मोरारजी देसाई की सरकार गिर चुकी थी। इसके बाद चौधरी चरण सिंह के साढ़े पांच महीनों तक प्रधानमंत्री रहने के पश्चात इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं। जिससे आरक्षण का मामला दबकर‌ रह गया। 31 अक्टूबर 1984 को जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई तो राजीव गांधी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन उसने भी मंडल आयोग की सिफारिशों की ओर ध्यान नहीं दिया। वर्ष 1989 में आम चुनाव का वक्त नजदीक पहुंच गया और तब तक राजीव गांधी की छवि बोफोर्स घोटाले के कारण दागदार हो गई थी। इसका फायदा जनता दल के नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह (वी.पी. सिंह) ने उठाया। उत्तरप्रदेश के फतेहपुर से सांसद बने वी.पी. सिंह 2 दिसंबर 1989 में भारतीय जनता पार्टी और नेशनल फ्रंट के समर्थन से देश के प्रधानमंत्री बनाए गए। वे लगभग एक साल तक इस पद पर बने रहे। सत्ता में रहने के दौरान 7 अगस्त 1990 को उन्होंने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान कर दिया। लेकिन वी.पी. सिंह की सरकार भी मंडल आयोग की केवल दो सिफारिशें ही लागू कराने में सफल रहा। जिनमें से पहला सरकारी शिक्षण संस्थाओं तथा दूसरा सरकारी नौकरियों में आरक्षण से संबंधित था। 

• मंडल आयोग का विरोध क्यों हुआ :

13 अगस्त 1990 को जब मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई तो देश में विरोध एवं आंदोलन का दौर शुरू हो गया। देश दो खेमों में बंटे गया था। एक तरफ सामान्य वर्ग था, जो इसका विरोध कर रहा था। उनका तर्क था कि आरक्षण से शिक्षा की गुणवत्ता और कार्य कुशलता में कमी आएगी तथा सामान्य वर्ग के लिए अवसर भी कम हो जाएंगे। दूसरी तरफ अन्य पिछड़ा वर्ग था, जिन्हें इसमें अपना सुनहरा भविष्य दिख रहा था। इसलिए दोनों गुटों में टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। जगह-जगह छात्र इस आरक्षण का विरोध तथा आत्मदाह करने का प्रयास कर रहे थे। जिस कारण देश में अशांति का माहौल व्याप्त हो गया था।

इस आयोग की सिफारिशों को लागू करने के विरोध में "अखिल भारतीय आरक्षण विरोधी मोर्चा" के अध्यक्ष उज्जवल सिंह ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर  दी।  

• EBC (Economically Backward Class) आरक्षण और इंदिरा साहनी मामला क्या है :

मंडल  आयोग द्वारा प्रस्तुत चालीस सिफारिशों में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए भी 10% आरक्षण की मांग की गई थी। जिसके तहत आरक्षण का आधार लोगों की आर्थिक स्थिति को माना गया था। अगर इस वर्ग को आरक्षण मिल जाता तो देश में कुल आरक्षण का प्रतिशत 59% हो जाता। जिसके विरोध में इंदिरा साहनी ने वर्ष 1991 में एक जनहित याचिका दायर की। इस याचिका में तर्क दिया गया था कि आरक्षण का आधार कभी भी आर्थिक स्थिति को नहीं बनाया जा सकता है। यह सीधे-सीधे मूल संविधान को चुनौती देता है। क्योंकि संविधान में आरक्षण का प्रावधान समाज एवं जातीय आधार पर किया गया है। इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय से अपील की गई थी कि आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% तक रखा जाए तथा आर्थिक आधार पर लागू किए जाने वाले आरक्षण व्यवस्था को निरस्त किए।

2019 में यह मामला फिर से प्रकाश में आया। भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार द्वारा इसे EWS आरक्षण के नाम से देश में लागू करने के लिए संसद में विधेयक को पेश किया गया। 

• इंदिरा साहनी मामले  का क्या फैसला आया :

सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहनी मामले में संज्ञान लेते हुए, इस पर सुनवाई शुरू की। इस मामले पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने यह मामला 9 जजों की पीठ को सौंप दिया। इस पीठ ने 6:3 बहुमत के आधार पर आरक्षण के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। इसके द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27% आरक्षण को सही ठहराया। साथ ही अधिकतम आरक्षण की सीमा को 50% तक सीमित कर दिया तथा आर्थिक आधार पर आरक्षण (EWS Reservation) की सिफारिश को निरस्त कर दिया।  

• वर्तमान में EWS (Economically Weaker Section) आरक्षण या सवर्ण आरक्षण का मामला क्यों सुर्खियों में है :

वर्तमान में नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने वर्ष 2019 में इस आरक्षण व्यवस्था को दोबारा लागू करने के लिए 103वें संविधान संशोधन विधेयक को लोकसभा में पेश किया। 8 जनवरी 2019 को जब मतदान हुआ, तो इस विधेयक के पक्ष में 323 मत पड़े जबकि विरोध में केवल 3 मत। इस प्रकार लोकसभा में यह विधेयक बहुमत से पारित हो गया। इसके बाद यह राज्यसभा में भी पारित हो गया। राज्यसभा में पारित होने के बाद इस विधेयक को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की भी स्वीकृति मिल गई। लेकिन इस कानून को लागू करने में कई अड़चनें उत्पन्न हो रहीं थीं। जिस कारण सर्वोच्च न्यायालय इस संदर्भ में ने वर्तमान सरकार को सूचित किया और 10% EWS आरक्षण के तर्क को नकार दिया। इसके पश्चात मुख्य न्यायाधीश जस्टिस यू.यू. ललित की अध्यक्षता में इस मामले पर सुनवाई के लिए 5 जजों की पीठ का गठन हुआ। उन 5 जजों की पीठ में मुख्य न्यायाधीश समेत चार अन्य न्यायाधीश - जस्टिस रवींद्र भट्ट, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी तथा जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे। 13 सितंबर 2022 निम्नलिखित तीन बिंदुओं पर इस मामले की सुनवाई  शुरू हुई :

(i) क्या संविधान के 103वें संशोधन के तहत सरकारी नौकरियों तथा सरकारी शिक्षण संस्थानों में EWS Reservation दिया जाना संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है ?

(ii) क्या संविधान के 103वें संशोधन के तहत निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण दिया जाना मूल संविधान का उल्लंघन नहीं है?

(iii) क्या एसटी, एससी और ओबीसी को EWS Reservation के दायरे से बाहर रखना मूल संविधान का उल्लंघन नहीं है?

उपरोक्त बिंदुओं पर चर्चा करने के पश्चात 27 सितंबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 3:2 के मत से फैसला EWS आरक्षण के पक्ष में आया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 103वें संशोधन अधिनियम के तहत आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को 10% आरक्षण दिया जाना सही है। इस प्रकार लगभग दो दशकों तक विरोध में रहने के बाद 7 नवंबर 2022 को EWS आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय की स्वीकृति मिल गई।

• EWS आरक्षण का लाभ किन लोगों को मिलेगा :

वैसे लोग जो एसटी, एससी और ओबीसी वर्गों में नहीं आते हैं अर्थात इन तीन वर्गों के लोग इस आरक्षण का फायदा नहीं उठा पाएंगे। उनको पूर्व में जितना प्रतिशत आरक्षण लाभ मिलता था, वहीं मिलता रहेगा।

सामान्य वर्ग के वैसे लोग जिनकी वार्षिक आय 8 लाख से कम है, उन्हें इस आरक्षण के तहत लाभ मिलेगा।

सामान्य वर्ग के अंतर्गत आने वाले वैसे ग्रामीण जिनके पास 5 एकड़ से कम खेती की जमीन है या 1000 वर्ग फुट का मकान है, उन्हें इस आरक्षण के तहत लाभ पहुंचेगा। 

सामान्य वर्ग से संबंधित वैसे लोग जिनके पास अधिसूचित निगम में 100 वर्ग गज या गैर अधिसूचित निगम में 200 वर्ग गज का प्लोट है, उन्हें भी EWS आरक्षण का लाभ मिलेगा।


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