क्या विश्व भर में होने वाला है खाद्यान्न का संकट ?

Russia-Ukraine Third World War

विगत कई महीनों से चल रहे रसिया-यूक्रेन युद्ध का खामियाजा पूरे विश्व को उठाना पड़ रहा है। इससे एक ओर जहां विश्व के देश दो खेमों में बंटे गये हैं, वहीं दूसरी ओर आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इस युद्ध में अमेरिका एवं ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश भी यूक्रेन का साथ दे रहे हैं। जिससे रुस ने पश्चिमी देशों के व्यापार पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा दिए हैं। इसमें खाद्यान्न, खनिज तेल, हथियार, अयस्क, वित्तीय सेवाएं इत्यादि शामिल हैं।

इस प्रतिबंध का खामियाजा अमेरिका तथा यूरोप की कई बड़ी कंपनियों जैसे एप्पल, मैकडोनाल्ड, कोका-कोला, पेप्सिको, आईबीएम, इंटेल, एरिक्सन, सीमेन्स, ब्रिटिश पेट्रोलियम इत्यादि, बैंकिग सेवाओं जैसे अमेरिकन एक्सप्रेस, बैंक ऑफ अमेरिका, सिटी ग्रुप इत्यादि तथा गूगल, अमेजन, नेटफ्लिक्स इत्यादि वेब आधारित सेवा कंपनियों को भी भुगतना पड़ा। इनमें से कई कंपनियों ने या तो रुस में अपने व्यापार को स्थागित कर दिया है या अपना पूरा व्यापार समेटकर रुस से बाहर निकल गये हैं। इन अमेरिकी कंपनियों के रुस के साथ व्यपार खत्म होने के कारण, इसका सीधा असर अमेरिका तथा रुस की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। 

रूस पूरे विश्व में खाद्यान्न फसलों का प्रमुख उत्पादक तथा निर्यातक है। विश्व को खाद्यान्न उपलब्ध कराने में रूस का बहुत बड़ा योगदान है। युद्ध के कारण रूस ने पश्चिमी देशों को इसका निर्यात बंद कर दिया है। जिससे पश्चिमी देशों में खाद्यान्न संकट जैसी स्थिति उत्पन्न होने की पूरी संभावना है। अमेरिका तथा रूस विश्व के दो सर्वाधिक शक्तिशाली एवं आर्थिक रूप से सशक्त देश हैं, जो विश्व की अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

• रूस तथा यूक्रेन के बीच युद्ध का कारण क्या है ?

Cause Of Russia-Ukraine War


वर्ष 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हो गया, तब यूक्रेन एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा। यूक्रेन के दक्षिणी हिस्से में क्रीमिया नामक एक स्वतंत्र गणराज्य है। यह क्षेत्र काला सागर के उत्तरी भाग में स्थित है, जहां पर खनिज तेल के विशाल भंडार स्थित हैं। यूक्रेन यहां पर मिलने वाले तेल एवं प्राकृतिक गैसों का निर्यात यूरोपीय देशों को किया करता था। लेकिन जब 2014 में रूस ने क्रीमिया पर अधिकार कर लिया, तब यहां पर स्थित खनिज तेल के भंडारों का नियंत्रण भी रूस के हाथों में चला गया। जिससे पश्चिमी देशों पर इसका बहुत ज्यादा असर पड़ा। अब इन देशों को तेल के आयात के लिए रूस पर निर्भर रहना पड़ रहा था। जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था। इसलिए पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को नाटो (नॉर्थ अटलांटिक प्रिटी ऑर्गेनाइजेशन) में शामिल करने का फैसला लिया। नाटो दस यूरोपीय तथा दो अमेरिकी देशों कनाडा एवं संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा स्थापित एक संगठन है, जिसका प्रमुख उद्देश्य विश्व युद्ध को रोकना है। नाटो यूक्रेन को अपना सदस्य इसलिए बनाना चाहता था ताकि वह क्रीमिया स्थित तेल भंडारों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर सके। जिससे पश्चिमी देशों को होने वाले तेल की आपूर्ति बाधित न हो। इसलिए उसने यूक्रेन को रुस के साथ युद्ध के लिए उकसाया।‌ जिसके कारण रुस-यूक्रेन का युद्ध आरंभ हुआ। इस प्रकार
रसिया-यूक्रेन युद्ध पश्चिमी देशों की महत्वाकांक्षी सोच का ही परिणाम है। अगर यूरोपीय देश एवं अमेरिका मध्यस्थता का कार्य करते तो इस युद्ध को रोका जा सकता था।

आगे हम NATO क्या है और कौन-कौन से देश NATO के सदस्य हैं, इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। नाटो की स्थापना कब हुई और इसका क्या कार्य है, इसके बारे में हम इस पोस्ट में आगे पढ़ेंगे।

• नाटो क्या है और कौन-से देश इसके सदस्य हैं ?

 

नाटो पश्चिमी देशों द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है, जिसका मुख्य कार्य विश्व भर में शांति स्थापित करना है। इसकी स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात 4 अप्रैल 1949 ई. को संयुक्त राज्य अमेरिका के वाशिंगटन डीसी शहर में हुई थी। इसका गठन विश्व युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होने से रोकना था ताकि देशों को महायुद्ध के भयंकर परिणामों से बचाया जा सके।

वर्ष 1949 में जब इसकी स्थापना की जा रही थी तो इसमें 12 देश शामिल थे। ये 12 देश - संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, इटली, डेनमार्क, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्समबर्ग, नार्वे, पुर्तगाल तथा नीदरलैंड्स हैं।‌ वर्तमान में इसके 30 सदस्य देश हैं जिनमें से 28 यूरोपीय तथा 2 अमेरिकी देश हैं।

• रसिया-यूक्रेन युद्ध से किस प्रकार विश्व भर में खाद्यान्न संकट उत्पन्न होगा ?

Rus Ukraine Yudh Ke Karan Khadyan Sankat

2022 में जब रसिया-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तब विश्व भर में खाद्यान्न का संकट गहराने लगा था। ऐसा इसलिए है क्योंकि यूक्रेन विश्व में गेहूं, बार्ली, मक्का, तोरिया एवं सूरजमुखी के तेल का प्रमुख उत्पादक एवं निर्यातक है। लेकिन युद्ध के कारण इन खाद्यान्न फसलों का निर्यात बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ। यूक्रेन का अधिकांश व्यापार काला सागर के द्वारा होता था। लेकिन इन दोनो देशों के बीच तनाव बढ़ने से रुस ने यूक्रेन के यूजनी, चेर्नोमोर्स्क तथा ओडेसा बंदरगाहों द्वारा काला सागर से होने वाले व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया था। विश्व के बाकी देशों को मिलने वाला खाद्यान अब यूक्रेन से बाहर निकल नहीं पा रहा था। जिससे विश्व भर में खाद्यान्न की आपूर्ति बंद हो गई तथा खाद्यान्न संकट उत्पन्न हो गया। तब तुर्की की मध्यस्थता से यूनाइटेड नेशन्स (यूएन) तथा रुस के बीच 22 जुलाई 2022 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके तहत यह निर्धारित किया गया कि रूस, यूक्रेन के काला सागर के द्वारा होने वाले व्यापार पर प्रतिबंध हटा देगा। जिससे विश्व के बाकी देशों तक खाद्यान्न पहुंच सके। रूस भी इस बात पर सहमत हो गया। अब यूक्रेन से निकलने वाला खाद्यान्न यूजनी, ओडेसी तथा चेर्नोमोर्स्क बंदरगाहों से काला सागर द्वारा तुर्की स्थित इस्तांबुल पहुंच रहा था, जहां पर रूसी सेना इसकी जांच किया करती थी। जांच के पश्चात खाद्यान्न यूरोपीय तथा अन्य देशों को पहुंचता था। यूएन तथा रुस के बीच समझौता तो हो गया लेकिन रूस तथा यूक्रेन का युद्ध नहीं रुका। यूक्रेन, रूस अधिकृत क्षेत्र क्रीमिया पर भी ड्रोन हमले कर रहा था। जिससे रूस को काफी नुकसान हो रहा था। विगत 8 अक्टूबर 2022 को क्रीमिया में स्थित पुल पर एक विस्फोटक हुआ जिससे पुल क्षतिग्रस्त हो गया। रूस द्वारा ऐसा आरोप लगाया गया कि यह यूक्रेन द्वारा किए गए ड्रोन हमले का परिणाम था। यह पुल पूरे यूरोप का सबसे लंबा पुल है तथा रूस के लिए काफी महत्वपूर्ण भी है, क्योंकि इसी के द्वारा युद्ध लड़ रहे रुसी सेना को ईंधन एवं खाद्य सामग्रियां पहुंचाई जा रही है। इस घटना के बाद जब यूक्रेन ने 29 अक्टूबर 2022 को क्रीमिया के काला सागर में स्थित सेवस्तापोल बंदरगाह पर खड़े युद्धपोतों को नष्ट कर दिया, तब रुस ने भी यूक्रेन के खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला लिया। यूएन तथा रुस के बीच हुए समझौते को रुस ने समाप्त कर दिया। जिससे विश्व के बाकी देशों को यूक्रेन से मिल रहे खाद्यान्न की आपूर्ति फिर से बाधित हो गई है। अगर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया तो विश्व को खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ेगा तथा चारों तरफ हाहाकार मच जायेगा।

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