मशरुम की खेती करके महीने के लाखों कैसे कमाएं



आज की इस पोस्ट में मैं आप सबों के लिए एक ऐसा बिजनेस आइडिया लेकर आया हूं, जिससे महीने के लाखों तक आसानी से कमाया जा सकता है। यह शत प्रतिशत मुनाफे वाला बिजनेस है। और यह बिजनेस है - मशरूम की खेती। वर्तमान समय में मशरूम की खपत काफी ज्यादा बढ़ गई है जिससे इसकी मांग में भी काफी वृद्धि हुई है। यह एक औषधीय गुणों से भरपूर खाद्य पदार्थ है, जो हमें कई प्रकार की बीमारियां से बचाता है। यह कैंसर जैसी घातक और जानलेवा बीमारी से भी हमारे शरीर की रक्षा करता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की एलोपैथिक तथा आयुर्वेदिक दवाइयों के निर्माण में भी होता है। बाजार में इसके सूखे पावडर की भी काफी ज्यादा मांग है। मशरूम महीने भर के अंदर ही खाने लायक हो जाता है। बाजार में इसका मूल्य प्रति किलो 200 से लेकर 500 रुपये तक रहता है। इसलिए मशरूम की खेती कम समय में ज्यादा मुनाफे वाला बिजनेस है। इस पोस्ट में आगे हम मशरूम की खेती कैसे की जाती है, इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

• मशरूम वास्तव में क्या चीज हैं ‌?

मशरूम एक प्रकार का कवक होता है जो अनुकूल वातावरण में विकसित होकर एक छत्ते का रूप ले लेता है। प्रकृति में कई प्रकार के मशरूम पाये जाते हैं लेकिन सभी खाने योग्य नहीं होती हैं। कुछ तो इतने विषैले होते हैं कि इससे आपकी जान तक जा सकती है। ये मुख्यता बरसात के दिनों में  जंगल और पहाड़ी इलाकों में अपने आप ही उग आते हैं। लेकिन आजकल इसकी खेती भी की जा रही है। इसे आमभाषा में कुकुरमुत्ता कहा जाता है। मशरूम न तो पौधे और न ही जीव की श्रेणी में आता है। इन्हें उगने तथा विकास करने के लिए धूप की आवश्यकता नहीं होती है। ये अपना भोजन मृत पौधौं तथा अपघटित हो रहे पदार्थों से प्राप्त करता है। इसमें धागे जैसी संरचनाएं पाई जाती हैं, जिन्हें माइसीलियम (Mycelium) कहा जाता है। इसके द्वारा ये पौधों की जड़ों का पोषण करते हैं तथा बदले में पौधे द्वारा तैयार भोजन ग्रहण कर अपना पोषण करते हैं। यह परिघटना पौधों तथा कवक के बीच सहजीवी संबंध को दर्शाता है। यह एक जैविक कीटनाशक की भांति भी कार्य करता है जो मिट्टी में स्थित हानिकारक पदार्थों को नष्ट करता है।

• मशरूम खाने के क्या फायदे हैं ?

मशरूम एक पौष्टिक आहार है जिसमें कई औषधीय गुण पाये जाते हैं। इसमें प्रोटीन तथा विटामिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मशरूम में प्रमुख रुप से विटामिन सी, विटामिन बी-6 तथा विटामिन डी-2 पाया जाता है। विटामिन डी-2, विटामिन डी-3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जो हड्डियों के विकास के लिए बहुत आवश्यक होता है। इसमें पाये जाने वाले खनिज लवणों में कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम‌ तथा आयरन प्रमुख हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी पाया जाता है जो बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करके हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है। मशरूम खाना डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर जैसी बीमारियों में भी काफी फायदेमंद होता है। इसके नियमित सेवन से कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी दूर रहती हैं। इसमें फैट और कैलोरी काफी कम होता है, जिस कारण यह वजन घटाने में भी बहुत फायदेमंद है।

 
• भारत में कितने प्रकार के मशरूम उगाए जाते हैं ?

वैसे तो भारत में कई प्रकार के मशरूम पाये जाते हैं लेकिन व्यवसायिक स्तर पर केवल तीन किस्मों का ही सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है‌ - (i) बटन मशरूम (Button Mushroom) (ii) ढींगरी मशरूम (Oyster Mushroom) तथा (iii) दूधिया मशरूम (Milky Mushroom)। सभी के लिए अलग-अलग तापमान एवं आद्रता की आवश्यकता होती है। जिस कारण इनकी बुवाई तथा कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। लेकिन आजकल कृत्रिम वातावरण बनाकर इनकी सालभर खेती की जा रही है। मशरूम उगाने के लिए जिन बीजों का इस्तेमाल किया जाता है‌, उसे स्पॉन (Spawn) कहा जाता है। मशरूम की इन तीन किस्मों की खेती में किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसका विस्तृत विवरण नीचे दिया गया है -

(i) बटन मशरूम (Button Mushroom) :


इस किस्म का उत्पादन मुख्य रूप से जाड़े के मौसम में अक्टूबर से लेकर फरवरी तक किया जाता है क्योंकि इसके विकास के लिए कम तापमान की आवश्यकता होती है। बटन मशरूम 80 से 90 प्रतिशत की सापेक्षिक आद्रता तथा 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर उगाई जाती है। इसकी अच्छी पैदावार के लिए उच्च कोटि का बीज इस्तेमाल करना चाहिए जो बीमारियों से मुक्त हो। जिस माध्यम में इसकी खेती की जा रही है वो भी अन्य हानिकारक कवकों से मुक्त होना चाहिए। इसे धान और गेहूं के भूसे से तैयार कम्पोस्ट/खाद में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके बीज लगाते समय तथा कवक के फैलाव के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी है और जब इसका विकास शुरू हो जाता है, तब 15 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान इसके लिए सर्वोत्तम होता है। बहुत ज्यादा तथा बहुत कम तापमान भी बटन मशरूम की फसल को बर्बाद कर सकता है। इसलिए जिस कमरे में इसकी खेती की जा रही है, वहां का तापमान अनुकूल बनाए रखना बहुत जरूरी है।

बटन मशरूम की खेती के लिए कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि - 

मशरूम की अच्छी पैदावार के लिए उच्च गुणवत्ता वाला कम्पोस्ट खाद बहुत जरूरी होता है। इसे तैयार करने के लिए सबसे पहले धान और गेहूं का भूसा लिया जाता है। इसे पक्के फर्श पर या तिरपाल के ऊपर 24 से 48 घंटों के लिए पानी में भिगोकर रखा जाता है ताकि यह नमी को अच्छी तरह सोख ले। इसके बाद इसमें गेहूं का चोकर, मुर्गी का बीट या सूखे गोबर की खाद, यूरिया, डीएपी, सिंगल सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश को अच्छी तरह मिलाकर इसका ढेर बना लिया जाता है। इस मिश्रण को पॉलीथिन से पूरी तरह ढंक कर रखा जाता है। एक हफ्ते के बाद इस मिश्रण को दोबारा अच्छी मिलाया जाता है। इसके 3 दिनों के बाद इसमें गुड़ एवं फ्यूराडॉन का छिड़काव किया जाता है। तीसरे हफ्ते इस मिश्रण की जांच की जाती है कि यह गाढ़े भूरे रंग का हो गया है कि नहीं। अगर इसमें से अब भी अमोनिया की गंध आ रही है तो इसे तीन से चार दिनों के लिए वापस पॉलीथिन से ढंक कर रख दिया जाता है। तीन दिनों के बाद खाद बनकर तैयार हो जाता है। इस खाद की प्रकृति अम्लीय होती है तथा इसका‌ pH मान 7 से 8 के बीच रहता है। इस खाद में अब मशरूम के बीजों की बुवाई की जा सकती है। इस कमपोस्ट को पॉलीथिन के बैग में भरकर इसमें मशरूम के बीजों को डाला जाता है‌। प्रति किलो कम्पोस्ट में 20 से 50 ग्राम बीजों की आवश्यकता होती है।

कम्पोस्ट के ऊपर डाले जाने वाले केसिंग मिट्टी की तैयारी -

जब 15 से 20 दिनों में छोटे-छोटे मशरूम उगना शुरु हो जाते हैं, तब इसके ऊपर मिट्टी की एक पतली परत बिछायी जाती है, जिसे केसिंग कहा जाता है। इस मिट्टी को तैयार करने के लिए दोमट या कोई अन्य मिट्टी लेकर इसमें आधी मात्रा में रेत मिलाएं। इसमें गोबर की खाद तथा फ्यूराडॉन को मिलाकर मिश्रण को एक दिन के लिए छोड़ दें। एक दिन के बाद यह मिट्टी केसिंग के लिए तैयार हो जाती है। हाथों को अच्छी तरह साबुन से धोने के बाद ही इसका छिड़काव करना चाहिए।

केसिंग मिट्टी बिछाने के बाद इसमें स्प्रेयर से पानी डालना चाहिए ताकि मिश्रण में नमी की मात्रा बनी रहे। मशरूम 3 से 4 हफ्तों में खाने लायक हो जाती हैं। इसकी तुड़ाई करते समय भी हाथों को अच्छी तरह साफ करना चाहिए। मशरूम की तुड़ाई करने के बाद मिट्टी लगे भाग को चाकू से काट देना चाहिए।

बटन मशरूम की बिक्री एवं बाजार मूल्य -

जहां तक हो सके बटन मशरूम की तुड़ाई के 10 से 12 घंटों के भीतर ही इसकी बिक्री कर देनी चाहिए। ज्यादा देर बाद ये खराब होना शुरू हो जाते हैं। हालांकि शीतक कमरे में इसका भंडारण किया जा सकता है। इसका थोक मूल्य प्रति क्विंटल 10,000 से 22,000 रुपये तक है। अर्थात आपको प्रति किलो 100 से 220 रूपये आसानी से मिल जाते हैं। अगर खुदरा मूल्य की बात करें तो बाजार में यह 300 से 500 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मिल जाता है। इसलिए आप अगर बाजार में इसकी सीधी बिक्री करते हैं तो थोक मूल्य से दोगुना मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों में इसके मूल्य में काफी अंतर होता है। 

(ii) ढींगरी मशरूम (Oyster Mushroom) :


इस मशरूम की खेती भी बटन मशरूम की तरह ही की जाती है लेकिन इसमें रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। इसकी खेती ठंड के महीने में आसानी से की जा सकती है। सबसे पहले धान या गेहूं के भूसे को उपचारित किया जाता है। इसके लिए भूसे को कार्बिन्डेजिम या अन्य किसी फंगीसाइड मिले हुए पानी में 12 से 24 घंटों के लिए डुबोकर रखा जाता है। भूसे को गर्म पानी में डुबोकर भी उपचारित किया जा सकता है। इसके बाद भूसे को कुछ घंटों के लिए पक्के फर्श या किसी पॉलीथिन शीट पर फैलाकर ऐसे ही छोड़ दिया जाता है ताकि इसमें से अतिरिक्त नमी बाहर निकल जाए। फिर इसे पॉलीथिन की पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) थैलियों में पैक किया जाता है। इसमें मशरूम के बीजों को दो तरीकों से लगाया जा सकता है। पहले तरीके की बात करें तो इसमें पॉलीथिन की बैग में थोड़ी सी कम्पोस्ट को डालकर मशरूम के बीजों को इसके ऊपर फैला देते हैं। फिर उसके ऊपर दोबारा कम्पोस्ट डालते हैं तथा बीजों को फैला देते हैं। इस तरह हम कम्पोस्ट की चार-पांच लेयर बनाने के बाद पॉलीथिन बैग के मुंह को बांधकर इस  बैग को अंधेरे कमरे में रख देते हैं। दूसरे तरीके में कम्पोस्ट के साथ मशरूम के बीजों को मिलाकर इस मिश्रण को पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) पॉलीथिन बैग में भरा जाता है तथा इसे अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है‌। हर एक बैग में 20 से 30 छेद कर लेने चाहिए ताकि जब मशरूम उगना शुरु हो तो ये इन छोदों के जरिए बाहर निकल सके और उनका विकास हो। जिन कमरे में इन बैग्स को रखा जाता है, वहां का तापमान 25 से 28 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। हमें इन बैग्स की नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर इनके ऊपर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए।

15 से 20 दिनों में ही बैग्स में रखा कम्पोस्ट दूधिया रंग का‌ हो जाता है और इससे मशरूम निकलना शुरू हो जाता है। ये मशरूम पॉलीथिन बैग्स से बाहर निकल आते हैं और बढ़ने लगते हैं। बीजों की बुवाई करने के 20 से 28 से दिनों में मशरूम खाने लायक हो जाते हैं। डेढ़ महीनों में इसकी तीन बार तुड़ाई की जा सकती है। इसकी तुड़ाई करते समय साफ चाकू का इस्तेमाल करना चाहिए। ओएस्टर मशरूम की खेती साल के छः महीनों, सितंबर से फरवरी तक की जा सकती है।

ओएस्टर मशरूम की बिक्री एवं बाजार मूल्य -

इस मशरूम का‌ थोक मूल्य 10,000 से 30,000 रूपये प्रति क्विंटल तक होता है। इसका मूल्य मंडी के भाव के हिसाब से घटता या बढ़ता रहता है। किसी राज्य में इसका मूल्य काफी अधिक होता है तो कहीं थोड़ा कम। अगर इसके खुदरा मूल्य की बात करें तो यह बाजार में 350 से 600 रुपये तक बिकता है।

(iii) दूधिया मशरूम (Milky Mushroom) :


गर्मियों के दिनों में मुख्य रूप से दूधिया या मिल्की मशरूम की खेती की जाती है। यह एकमात्र ऐसा मशरूम है जिसकी खेती व्यवसायिक तौर पर गर्मियों में की जा सकती है। इस मशरूम के लिए अधिक तापमान और आद्रता की आवश्यकता होती है। बीजों से जब मशरूम निकलने लगता है, उस समय 28 से 38 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 80 से 90 प्रतिशत आद्रता जरुरी होता है। उच्च तापमान पर भी मशरूम की यह किस्म अच्छी पैदावार देता है। 

दूधिया मशरूम की खेती के लिए सबसे पहले धान या गेहूं के भूसे को कवकनाशी या गर्म पानी से उपचारित करना चाहिए। इसके बाद इसे पक्के फर्श या पॉलीथिन की शीट पर फैलाकर कुछ घंटों के लिए छोड़ देना चाहिए। फिर इस भूसे को पॉलीथिन के पारदर्शी (ट्रांसपेरेंट) बैग्स में भरा जाता है। इसमें मशरूम के बीज लगाने के लिए सबसे पहले भूसे की एक पतली परत बिछायी जाती है और उसके ऊपर बीजों को फैला दिया जाता है। फिर इन बीजों के ऊपर भूसा डालकर पतली परत बनायी जाती है और उस पर बीज डाले जाते हैं। इस प्रकार चार से पांच लेयर बना ली जाती है और पॉलीथिन बैग का मुंह बांध दिया जाता है। इसके बाद इन बैग्स को अंधेरे कमरे में रख दिया जाता है, जहां का तापमान 28 से 38 डिग्री सेल्सियस तक हो। कमरे की आद्रता 80 से 90 प्रतिशत के बीच होनी चाहिए। समय-समय पर पॉलीथिन के बैग्स की आद्रता भी जांचनी चाहिए। 10 से 12 दिनों में जब इन बैग्स में भूसे का रंग दूधिया हो जाता है और इसमें से मशरूम निकलना शुरू हो जाता है तो पॉलीथिन बैग्स के मुंह को खोलकर भूसे के ऊपर मिट्टी की केसिंग करनी चाहिए। इसके लिए आप पुरानी गोबर की खाद का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इन बैग्स की आद्रता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। केसिंग के 8 से 9 दिनों में ही मशरूम पूरी तरह विकसित होकर खाने लायक बन जाती हैं। इसलिए इसकी तुड़ाई की जाती है।

दूधिया मशरूम की बिक्री एवं बाजार मूल्य -

दूधिया मशरूम की बाजार में काफी मांग रहती है क्योंकि ये पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर होते हैं। इस मशरूम का थोक मूल्य प्रति क्विंटल 8,000 से लेकर 25,000 रुपये तक होता है। अगर खुदरा मूल्य की बात करें तो यह बाजार में 300 से 550 रूपये तक बिकता है। 

 

मशरूम की खेती एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें बाकी फसलों की तुलना में कई गुना ज्यादा फायदा मिलता है। बाजार में मशरूम कभी भी सस्ता नहीं मिलता है‌ और साल भर इसकी मांग भी बनी रहती है। इसलिए इसके उत्पादन में नुकसान होने की संभावना नहीं के बराबर होती है। इसलिए आप भी अगर महीने के 2 से 5 लाख रुपये तक कमाना चाहते हैं तो मशरूम की खेती अवश्य ही आरंभ करें।

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